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Friday, May 3, 2024
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लातेहार: नहाय खाय के साथ कल से शुरू होगा आस्था का महापर्व छठ

लातेहार : जिले में आस्था का महापर्व छठ शुक्रवार (17 नवंबर) को नहाय खाय के साथ शुरू होगा। 18 नवंबर पंचमी को खरना, 19 नवंबर षष्ठी को डूबते सूर्य को अर्घ्य और 20 नवंबर सप्तमी को उगते सूर्य को जल अर्पित कर व्रत संपन्न किया जायेगा। सूर्य पूजा समिति की ओर से छठ पूजा की जोरदार तैयारियां चल रही हैं।

पंडित नरेंद्र मिश्रा ने बताया कि चार दिन चलने वाले इस पर्व में सूर्य और छठी मैय्या की पूजा की जाती है। इस दिन रखा जाने वाला व्रत बेहद कठिन माना जाता है, क्योंकि इस व्रत को 36 घंटों तक कठिन नियमों का पालन करते हुए रखा जाता है। इस वर्ष छठ पर्व की पूजा 17 नवंबर से हो रही है, जिसका समापन 20 नवंबर को होगा। उन्होंने कहा कि पंचमी को खरना, षष्ठी को डूबते सूर्य को अर्घ्य और सप्तमी को उगते सूर्य को जल अर्पित कर व्रत संपन्न किया जाता है। इस दिन रखा जाने वाला व्रत बेहद कठिन माना जाता है, क्योंकि इस व्रत को 36 घंटों तक कठिन नियमों का पालन करते हुए रखा जाता है।

उन्होंने कहा कि छठ का पर्व कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर नहाय खाय से शुरू होता है। चार दिनी यह व्रत संतान के सुखी जीवन की कामना के लिए किया जाता है। इस पर्व में मुख्यतः सूर्य देव को अर्घ्य देने का सबसे ज्यादा महत्व माना गया है।

छठ पूजा का यह महापर्व चार दिन तक चलता है। इसका पहला दिन नहाय-खाय होता है। इस साल नहाय-खाय 17 नवंबर को है। बता दें कि छठ पूजा की नहाय खाय परंपरा में व्रती नदी में स्नान के बाद नए वस्त्र धारण कर शाकाहारी भोजन ग्रहण करते हैं। इस दिन व्रती के भोजन ग्रहण करने के बाद ही घर के बाकी सदस्य भोजन ग्रहण करते हैं।

पंडित नरेंद्र मिश्रा ने कहा कि खरना छठ पूजा का दूसरा दिन होता है। इस साल खरना 18 नवंबर को है।खरना के दिन व्रती एक समय मीठा भोजन करते हैं। इस दिन गुड़ से बनी चावल की खीर खायी जाती है। इस प्रसाद को मिट्टी के नये चूल्हे पर आम की लकड़ी से आग जलाकर बनाया जाता है। इस प्रसाद को खाने के बाद व्रत शुरू हो जाता है। इस दिन नमक नहीं खाया जाता है।

पंडित नरेंद्र मिश्रा ने कहा कि छठ पूजा पर सबसे महत्वपूर्ण दिन तीसरा होता है। इस दिन संध्या अर्घ्य का होता है। इस दिन व्रती घाट पर आकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इस साल छठ पूजा का संध्या अर्घ्य 19 नवंबर को दिया जायेगा। 19 नवंबर को सूर्यास्त शाम 05:22 बजे होगा। इस दिन टोकरी में फलों, ठेकुआ, चावल के लड्डू आदि अर्घ्य के सूप को सजाया जाता है। इसके बाद नदी या तालाब में कमर तक पानी में रहकर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।

पंडित नरेंद्र मिश्रा ने कहा कि चौथा दिन यानी सप्तमी तिथि छठ महापर्व का अंतिम दिन होता है। इस दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण का होता है। इस साल 20 नवंबर को उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जायेगा। इस दिन सूर्योदय सुबह 06:39 बजे होगा। इसके बाद ही 36 घंटे का व्रत समाप्त होता है। अर्घ्य देने के बाद व्रती प्रसाद का सेवन करके व्रत का पारण करती हैं। ओरंगा नदी छठ घाट समेत अन्य छठ घाटों पर विभिन्न सूर्य पूजा समितियों की ओर से व्यापक स्तर पर तैयारियां की जा रही है। सूर्य पूजा समिति समेत अन्य संस्थाओं की ओर छठ व्रतियों के लिए समुचित व्यवस्था उपलब्ध कराने का प्रयास किया जा रहा है।

छठ के दौरान सामूहिकता और सामजिक एकता की ऐसी मिसाल किसी दूसरे पर्व त्यौहारों में देखने को नहीं मिलती। न किसी के साथ भेदभाव है न जात-पात का भेद। यहां मिलते हैं तो सिर्फ भगवान भास्क्रर के सच्चे भक्त। एक साथ समूह में नंगे वदन जल में खड़े होकर भक्तों का समूह हर प्रकार के भेदभाव को मिटा देता है।

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पंडित नरेंद्र मिश्रा बताते हैं कि भगवान सूर्य की कृपा जितनी महलों पर पड़ती है, उतनी ही झोपड़ियों पर भी। इस पर्व में न कोई बड़ा होता है और न कोई छोटा। पंडित जी ने कहा कि यह व्रत हिंदू समाज को एकसूत्र में बांधकर रखने का संदेश देता है।