Tuesday, January 14, 2025
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झारखंड लोकसभा चुनाव: 7 सीटों का विश्लेषण और संभावना

रांची : झारखंड में इस बार के लोकसभा चुनाव कई सीटों पर दिलचस्प और कांटे की टक्कर देखने को मिली है। भाजपा के नेतृत्व में एनडीए गठबंधन और कांग्रेस के नेतृत्व में इंडी गठबंधन के बीच सत्ता की खींचतान में जहां कुछ सीटों पर भाजपा का वर्चस्व दिख रहा है, वहीं कुछ क्षेत्रों में इंडी गठबंधन ने भी मजबूत पकड़ बनायी है। यहां पर हजारीबाग, धनबाद, रांची, लोहरदगा, खूंटी, सिंहभूम, और जमशेदपुर लोकसभा सीटों का विश्लेषण और संभावित परिणाम प्रस्तुत है।

हजारीबाग लोकसभा सीट पर इस बार भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की जीत का प्रबल संकेत मिल रहा है। भाजपा उम्मीदवार मनीष जायसवाल के पक्ष में उमड़ी भारी भीड़ और उत्कृष्ट बूथ प्रबंधन इसका प्रमुख कारण है। शुरुआत में जयप्रकाश भाई पटेल एक मजबूत टक्कर दे रहे थे, लेकिन अंतिम चरण में वे पीछे रह गये। बड़का गांव और बरही जैसे इलाकों में, जहां कांग्रेस के विधायक हैं, भाजपा का प्रदर्शन बेहतर रहा है। हजारीबाग के प्रत्येक विधानसभा सीट पर मनीष जायसवाल की लीड संभावित है।

मांडू विधानसभा क्षेत्र, जहां जयप्रकाश भाई पटेल विधायक हैं, वहां भी भाजपा को तिवारी महतो के कार्यों के कारण अच्छी टक्कर मिल रही है। जेबीकेएसएस के उम्मीदवार संजय मेहता ने कुर्मी वोटर्स का बड़ा हिस्सा अपने पक्ष में किया है, जिससे जयप्रकाश भाई पटेल की स्थिति कमजोर हो गयी है। इन सभी कारणों से मनीष जायसवाल की जीत निश्चित लग रही है।

धनबाद लोकसभा सीट पर भाजपा के ढुल्लू महतो और कांग्रेस की अनुपमा सिंह के बीच मुकाबला है। आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता भास्कर झा कांग्रेस की जीत का अनुमान लगा रहे हैं, लेकिन ढुल्लू महतो साफ जीतते नजर आ रहे हैं। भाजपा ने इस सीट पर कड़ी मेहनत की है और इसका श्रेय सुरेश साहू को जाता है। हालांकि, राजपूत कम्युनिटी का वोट ढुल्लू महतो को नहीं मिल रहा है, लेकिन उनके टाइगर फोर्स के कार्यकर्ताओं ने पूरे क्षेत्र में अद्भुत प्रबंधन दिखाया है। अनुपमा सिंह के बूथ मैनेजमेंट में कमी और उनके पति जय मंगल सिंह की कंजूसी ने कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया है। इस प्रकार, ढुल्लू महतो की जीत की संभावना काफी मजबूत है।

रांची लोकसभा सीट पर मुकाबला कड़ा होता जा रहा है। भाजपा के लोग इसे आसान जीत मान रहे थे, लेकिन कांग्रेस की यशस्विनी सहाय ने चुनौती दी है। हालांकि, यशस्विनी सहाय का नाम देर से घोषित होने के कारण वे प्रखंड स्तर तक पहुंच नहीं पायीं। प्रारंभिक अनुमान के अनुसार, इचागढ़ और सिल्ली विधानसभा क्षेत्रों में संजय सेठ तीसरे स्थान पर हैं, जबकि रांची और हटिया विधानसभा क्षेत्रों में उन्हें लीड मिल रही है। कांके में भी संजय सेठ को थोड़ी मार्जिन से लीड मिल रही है।

दूसरी ओर, देवेंद्र महतो को सिल्ली और इचागढ़ में लीड मिल रही है, जबकि रांची और हटिया में वे चौथे या पांचवे स्थान पर खिसकते नजर आ रहे हैं। यह संजय सेठ के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है, क्योंकि यशस्विनी सहाय खिजरी विधानसभा को छोड़ किसी भी विधानसभा क्षेत्र में लीड नहीं कर पा रही हैं। इस प्रकार, भाजपा के कोर वोटर्स और महिलाओं के अंडरकरंट समर्थन के चलते संजय सेठ रांची सीट से जीतते हुए नजर आ रहे हैं।

लोहरदगा लोकसभा सीट इस चुनाव में सबसे दिलचस्प और प्रतिस्पर्धात्मक सीटों में से एक बनकर उभरी है। भाजपा के समीर उरांव के खिलाफ कांग्रेस के सुखदेव भगत के बीच कड़ी टक्कर देखी जा रही है। समीर उरांव पर आरोप है कि उन्होंने राज्यसभा सांसद रहते हुए भी लोहरदगा के विकास के लिए कोई ठोस काम नहीं किया। दूसरी ओर, सुखदेव भगत, जो क्षेत्र के एक बड़े प्रशासनिक अधिकारी रह चुके हैं, ने अपने पुराने संबंधों का लाभ उठाने की कोशिश की है। हालांकि, उनके नाम की घोषणा देर से होने के कारण उनकी चुनावी तैयारियों पर असर पड़ा।

यह क्षेत्र आदिवासी बाहुल्य है और सबसे बड़ी आदिवासी कम्युनिटी उरांव जनजाति भाजपा से दूर जाती दिख रही है। ईसाई और मुस्लिम समुदाय के वोटर भी सुखदेव भगत के पक्ष में हैं। झारखंड मुक्ति मोर्चा के चमरा लिंडा ने भी निर्दलीय चुनाव लड़कर कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाई है, जिससे भाजपा को अप्रत्यक्ष लाभ मिल सकता है। हालांकि, वोटों के रुझान और विभिन्न आकलनों के अनुसार, सुखदेव भगत की जीत की संभावना अधिक है। इस प्रकार, यह सीट कांग्रेस के पक्ष में झुकी हुई नजर आ रही है।

खूंटी लोकसभा सीट पर भाजपा के केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा और कांग्रेस के कालीचरण मुंडा के बीच कांटे की टक्कर है। 2019 में कालीचरण मुंडा केवल 1445 वोटों से हारे थे, और इस बार भी स्थिति प्रतिस्पर्धात्मक है। भाजपा में तीन गुटों की विभाजन ने स्थिति को और जटिल बना दिया है। भाजपा विधायक कोचे मुंडा और नीलकंठ सिंह मुंडा का निष्क्रिय रवैया और धन की कमी ने पार्टी की स्थिति को कमजोर किया है।

दूसरी ओर, कांग्रेस और झामुमो के गठबंधन ने बेहतर तालमेल और समन्वय दिखाया है। कई बूथों पर भाजपा के पोलिंग एजेंट की अनुपस्थिति भी कांग्रेस के पक्ष में गयी है। झारखंड पार्टी और अन्य आदिवासी पार्टी के कार्यकर्ताओं का झुकाव भी कालीचरण मुंडा के पक्ष में हुआ है। इन सब कारणों से कालीचरण मुंडा की जीत की संभावना प्रबल दिख रही है।

सिंहभूम लोकसभा सीट पर भाजपा की गीता कोड़ा और झामुमो की जोबा मांझी के बीच मुकाबला है। पहले कांग्रेस की सांसद रह चुकीं गीता कोड़ा ने इस बार भाजपा का दामन थामा, लेकिन इससे उनकी लोकप्रियता में गिरावट आयी है। हो समुदाय, जिसकी यहां बहुलता है, ने गीता कोड़ा का समर्थन कम किया है। झामुमो और कांग्रेस के गठबंधन ने जोबा मांझी को मजबूती से समर्थन दिया है। गीता कोड़ा सिर्फ जगन्नाथपुर विधानसभा में लीड लेते नजर आ रही हैं, बाकी सभी विधानसभा क्षेत्रों में जोबा मांझी को बढ़त मिल रही है।

भाजपा के अंदरुनी विवाद और गीता कोड़ा के पति मधु कोड़ा के साथ हुए विवाद ने स्थिति को और खराब किया है। साइलेंट वोटर गीता कोड़ा के पक्ष में जा सकते हैं, लेकिन वर्तमान आंकड़ों और राजनीतिक विश्लेषण के अनुसार, जोबा मांझी की जीत की संभावना अधिक दिख रही है।

जमशेदपुर लोकसभा सीट पर भाजपा सांसद विद्युत वरण महतो और झामुमो विधायक समीर मोहंती के बीच मुकाबला हो रहा है। कुर्मी फैक्टर, जो सबसे बड़ी जाति है, का समर्थन महतो को मिल रहा है। जमशेदपुर में बाहरी लोग, जो औद्योगिक शहर होने के कारण यहां बसे हैं, उनका वोट भी भाजपा को मिल रहा है। जमशेदपुर पूर्वी और पश्चिमी विधानसभा क्षेत्रों में विद्युत वरण महतो लीड करते नजर आ रहे हैं। बहरागोड़ा और जुगसलाई में समीर मोहंती को बढ़त मिल सकती है, लेकिन कुल मिलाकर विद्युत वरण महतो का अप्पर हैंड है। मुकाबला कड़ा है, लेकिन एडवांटेज विद्युत वरण महतो को ही दिख रही है।

झारखंड में लोकसभा चुनाव पर पैनी नजर है, एग्जिट पोल और विश्लेषणों से पता चलता है कि बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन और इंडी गठबंधन के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा है। जहां भाजपा की पकड़ हज़ारीबाग़, धनबाद और रांची जैसे निर्वाचन क्षेत्रों में मजबूत दिख रही है, वहीं कांग्रेस लोहरदगा और खूंटी जैसे अन्य क्षेत्रों में बढ़त हासिल कर रही है। सिंहभूम में झामुमो प्रबल दावेदार है, जबकि जमशेदपुर में भाजपा का पलड़ा भारी है। इन सीटों पर कांटे की टक्कर है, जिससे स्पष्ट विजेता की भविष्यवाणी करना मुश्किल हो गया है। अंतिम नतीजा वोटों की गिनती के बाद ही तय होगा। यह देखना बाकी है कि झारखंड में कौन सी पार्टी विजयी होगी और राज्य के भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगी। इन चुनावों के नतीजे राज्य के राजनीतिक परिदृश्य और इसके भविष्य के विकास पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालेंगे।

झारखंड लोकसभा चुनाव विश्लेषण